Sunday, February 6, 2011

राजेन्द्र सिंह (Rajendra Singh) : The Waterman of Rajasthan


http://www.tarunbharatsangh.org 
http://en.wikipedia.org/wiki/Rajendra_Singh


Rajendra Singh, is a winner of 2001 Ramon Magsaysay Award For Community leadership. He leads an organization, Tarun Bhagat Sangh, which is supported by the United Nations, USIAD, and the World bank. He was highly appreciated and recognized for the efforts he made for harvesting rain water water by building check dams in Rajasthan. It is because of this he is popularly known as the 'Jal Pusush' or the 'Water man of Rajasthan'

Rajendra Singh Since 1985, Tarun Bhagat Sangh, headed by Rajendra Singh have been working in the Alwar district of Rajasthan, focusing on the revival of Johads, streams and rivers in the area. They were of the opinion that without water in region no other significant development could take place. And with the successful implementation of the programme and with the total dedication of all the team members along with the cooperation of the villagers, today more than 4,500 working Johads dot Alwar and surrounding districts. (Johad is concave structure which collects and store water throughout the year. It is used for the drinking purpose by humans and cattle).

Above all what is really commendable is that they work for the revitalization of the five rivers that went dry for the long time. River Ruparel, that went dead, has stared flowing again after the span of three decades. Even the Arvari River basin, which was once barren became a water source, due to the active participation and hard work of the team members. On the other sides rejuvenation of the traditional water harvesting structures on such a large scale is a positive indication of development in the state. And it was definitely a sincere effort by Rajendra Singh for eradicating the scarcity of water in the rural areas of Rajasthan. In many villages people have started building Johads of their own. Now the women need not to travel to the far away places to collect water, fuel wood and fodder. They educated the mind of the people and made them understand the importance of water conservation. It is a perfect solution for the long standing problem of water in the remote areas. Water harvesting is a good way to tackle with the problem of drought and floods.

Rajendra Singh along with his other team members persuaded the villagers to rejuvenate their functioning style, which in turn changed the total life line of Rajasthan. He has plans to cover more of 45 villages in the next one year. He has also decided to take up the project of river Luni, the only flowing water source in western parts of Rajasthan. The condition of the river is getting worst with the day by day increasing pollution from the numerous textile units Pali.

Organization of Rajendra Singh has overall 45 full time employees and 230 part time workers. He is a charismatic personality and the real hero of poor. He spends eight months of the year on road working day and night without seeing the face of his wife and son. Until 1984, he knew nothing about the water and its conservation methods. It were the villagers who showed me the value of water, and till date The work done by the Rajendra Singh is a inspiration for the million others in the nation.



‘तरुण भारत संघ’ ने पिछले 25 वर्षों में देशभर में दस हजार से ज्यादा जोहड़-तालाब बनवाये हैं। इस संगठन के कार्यकर्ताओं ने समुदायों को सचेत करके जल की समझ बढ़ाकर और उन्हें जल सहेजने वाले कार्यों में जोड़कर तथा जल संरक्षण व जल के अनुशासित उपयोग के संस्कार बनाकर और कम पानी में पैदा होने वाले अन्न उत्पादन को बढ़ावा देकर सात नदियों को पुनर्जीवित किया है।

‘तरुण भारत संघ’ ने राजस्थान के हजारों गांव, जो बेपानी होकर उजड़ गये थे, उनका पुनर्वास किया है। उनकी लाचारी-बेकारी व बीमारी मिटाने का काम किया है। ‘तरुण भारत संघ’ नदियों का अतिक्रमण हटाने हेतु सरकारों से नदियों की भूमि का सीमांकन करवाने में जुटा है।

यह संगठन नदियों से प्रदूषण रोकने हेतु सामुदायिक प्रदूषण मापन करके समाज-संत व राज्य की जिम्मेदारी बताने में, नदियों का पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने हेतु भूजल शोषण रोकने में तथा रिज से वैली सिद्धांत की पालन करके भूजल पुनर्भरण करने में लगा है।

इस संगठन ने अभी तक 144 नदियों की चेतना यात्राएं आयोजित की हैं। इस संगठन का दूसरा नाम नदियों को पुनर्जीवित करने वाला संगठन भी है। यह भारत में नदी पुनर्जीवित बनाने वाला संगठन माना जाता है।

राजेन्द्र सिंहराजेन्द्र सिंह‘तरुण भारत संघ’ ने जिन सात नदियों ‘अरवरी, सरसा, भगाणी, जहाजवाली, साबी, रूपारेल और महेश्वरा’ को पुनर्जीवित करने वाला काम किया है। ये सातों नदियां गंगा बेसिन की नदियां हैं। ‘तरुण भारत संघ’ अब चाहता है कि पूरी गंगा में ही जल प्रवाह बढ़े तथा गंगा अविरल और निर्मल बने। इसी हेतु ‘तरुण भारत संघ’ के उपाध्यक्ष श्री गुरुदास अग्रवाल ने भागीरथी पर बन रहे बांधों को रुकवाने हेतु आमरण अनशन किया था।

अध्यक्ष श्री राजेन्द्र सिंह जी ने गोमुख, भोजावास व गंगोत्री में कचरा प्रबंधन तथा प्रदूषण जांच की सामुदायिक व्यवस्था बनाई है। भविष्य में पूरी गंगा नदी के दोनों किनारों पर गंगा संसद आयोजित करके गंगा स्वच्छता के लिए राज, समाज और संतों की जिम्मेदारी से गंगा निगरानी रखने वाली तरुणों व युवाओं की एक तरुण गंगा समिति बनायेंगे। इसी प्रकार प्रौढ़ों व बुजुर्गों की गंगा जलबिरादरी भी बना रहे हैं।

‘तरुण भारत संघ’ आजकल गंगा बेसिन प्राधिकरण को गंगा में बेसिन संवर्द्धन हेतु तैयार करने में जुटा है। बेसिन मैनेजमेन्ट करके पानी प्रवाह बढ़ाने की दिशा में काम कर गंगा क्षेत्र की खेती और फसल चक्र पर भारत सरकार और राज्य सरकारों का ध्यान दिलाने की कोशिश में जुटा है।

‘तरुण भारत संघ’ ने गंगा का सामुदायिक मास्टर प्लान तैयार किया है। यह संगठन चाहता है कि गंगा स्वच्छता की जिम्मेदारी समुदायों को दी जाये। संत जन इसकी मोनीटरिंग करें। राज गंगा स्वच्छता हेतु सभी साधन जुटायें। जिससे गंगा में काम करने वाले इंजीनियर व वैज्ञानिक गंगा के लिए जिम्मेदार बनकर काम कर सकें। संगठन ऐसी व्यवस्था बनवाने के लिए भी प्रयासरत है।

‘तरुण भारत संघ’ स्वयं जिम्मेदारी लेकर शुक्रताल (मुजफ्फरनगर) से नरोरा (बुलंदशहर) तक गंगा में स्वच्छता हेतु सामुदायिक मॉडल तैयार करेगा। भारतीय समाज पूरी गंगा को समझे, और समझकर इसे स्वच्छता में जोड़ने का काम करे। ‘तरुण भारत संघ’ गंगा के एक क्षेत्र को स्वच्छता का मॉडल बनाने में जुटा है। गंगा सबकी है। इसकी स्वच्छता हेतु सभी जिम्मेदार है। गंगा को भारत के संतजनों की प्रेरणा और निगरानी की जरूरत है। लम्बे काल तक हमारे संतों की साधना और सिद्धि से गंगा शुद्ध बनी रही थी। ‘तरुण भारत संघ’ संतों को उनकी गंगा भूमिका निभाने हेतु प्रार्थना कर रहा है। कुंभ में भी बहुत से कार्यक्रम इसी उद्देश्य से रखे थे।

‘तरुण भारत संघ’ ने जिन सात नदियों ‘अरवरी, सरसा, भगाणी, जहाजवाली, साबी, रुपारेल और महेश्वरा’ को पुनर्जीवित करने वाला काम किया है। ये सातों नदियां गंगा बेसिन की नदियां हैं। ‘तरुण भारत संघ’ अब चाहता है कि पूरी गंगा में ही जल प्रवाह बढ़े तथा गंगा अविरल और निर्मल बने। ‘तरुण भारत संघ’ ने पूरी गंगा में गंगा संवाद आयोजित करने, तरुण ‘गंगा निगरानी समितियां’ बनाने, ‘गंगा जल बिरादरी’ गठित करके गंगा के रचनात्मक कार्य कराने, गंगा स्वच्छता चेतना यात्रा के बाद शुक्रताल से नरोरा के बीच गंगा स्वच्छता हेतु रिवर-सीवर को अलग-अलग करने, छोटी-छोटी जल धाराओं को पुनर्जीवित बनाने, सजीव खेती को बढ़ावा दिलाने और गंगा भूमि तथा जल स्रोतों के सीमांकन की मांग की है। उम्मीद है, सरकार शीघ्र ही गंगा भूमि का अतिक्रमण हटवाने का कार्य शुरू कर देगी; अन्यथा ‘तरुण भारत संघ’ पुनः सत्याग्रह शुरू करेगा।

‘तरुण भारत संघ’ ने एक हजार गंगा भक्तों को गंगा सेवा में लगाने की तैयारी की है। गंगा की अविरलता व निर्मलता के कार्य में समुदायों को जोड़ना है। समाज का मन-मानस गंगामय बनाकर गंगा की विलक्षण प्रदूषण नाशिनी शक्ति की रक्षा करनी है। गंगा सेवा से गंगा संरक्षण संभव है। गंगा सेवा जन्म स्थल गोमुख से शुरू की है।

‘तरुण भारत संघ’ ने 21 मई, 2010 से सैफ, मंदिर समिति, गंगोत्री, साधु, समाज के साथ मिलकर कचरा प्रबंधन व पुनर्चक्रण का कार्य शुरू किया है। गंगा स्नान पुण्य कर्म माना जाता है। सक्षम सबल, सामर्थ्यवान लोग गंगा के उद्गम स्थल पर पहुंचकर स्नान करके अपने कपड़े और मैला सभी कुछ गंगा में त्यागकर आते हैं। प्लास्टिक आदि भी वहीं छोड़कर आते हैं। वे इस कर्म को पाप धोना मानकर पाप मुक्त बन जाते हैं। सरकार के वन एवम् पर्यावरण विभाग ने इसे रोकने की कोशिश की है; लेकिन इनकी ढिलाई और गैर जिम्मेदारी ही इस कार्य को सफल नहीं होने दे रही है। यहां खच्चरवाड़ी का सभी मैला तथा गंगोत्री मंदिर की पूरी गंदगी भागीरथी गंगा में आती है। यहां के सभी घर होटल बन गये हैं। सभी होटल अपना मैला सीधा गंगा मां में प्रवाहित करते हैं। साधु समाज ने 22 मई को अपना मैला गंगा मैया में जाने पर रोक लगाने का संकल्प लिया है। इस हेतु साधु समाज ने भगीरथी के बीचोंबीच गंगोत्री में एक सभा आयोजित की।

गंगोत्री के सबसे पुराने कृष्णाश्रम ने अपनी गंदगी अब गंगा मैया में नहीं जाने देने का फैसला कर लिया है। इन्होंने आश्रम की सबसे ऊंची जगह पर गंगा से दूर अपना जैविक पिट लगा लिया है। इसमें प्लास्टिक, कांच, लोहा, आदि नहीं जाने देते, इन्हें अलग-अलग करके रखते हैं।

कचरा कुप्रबंधन ने जलस्रोतों को कचरापात्र में बदल दिया है। गंगा मैया देवी हैं, तथा व्यक्ति निर्मित जलस्रोतों को वरूण देवता का स्थान मानने वाला भारत देश अब पूर्णतया पर्यावरण रक्षा के खतरों से बेखबर है। प्रकृति और पर्यावरण की यह बेरुखी हमारी प्रकृति के प्रति आस्था के मरने के कारण हुई है। पहले लोग जन्म-मरण, शादी-विवाह व धार्मिक उत्सवों पर गंगा, कावेरी, गोदावरी व कृष्णा जैसी नदियों तथा कुएं-तालाब-बावड़ी सभी की पूजा करते थे। पूजा के ये स्थान (तालाब-बावड़ी) अब कचरा-घर बन रहे हैं। इनको कचरा-घर में तब्दील करने वाली सीख सरकार ही दे रही है। इसे ही अब रोकना पड़ेगा।

भोजावास के लाल बाबा के मंदिर में जैविक कचरा डालकर केंचुए विशेष डालकर खाद बनाना शुरू किया है। मौनी आश्रम, पुलिस थाना, वन विभाग को भी इस दिशा में साथ जोड़ने वाला काम शुरू करके जलस्रोतों को कचरा मुक्त बनाने वाली सामुदायिक प्रक्रिया शुरू हो गई है। केन्द्रिय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने भी ‘तरुण भारत संघ’ कार्यकर्ताओं को प्रदूषण जांचने का प्रशिक्षण दिया है। ‘तरुण भारत संघ’ में सामुदायिक प्रदूषण मापने का प्रशिक्षण प्राप्त करके अब ये ही कार्यकर्ता सामुदायिक स्तर पर औद्योगिक प्रदूषण मापने का काम पूरी गंगा के किनारे दोनों तरफ के हर गांव, नगर, शहर, महानगरों में सामुदायिक नदी संरक्षण हेतु 29 बड़े, 23 मंझले, 48 कस्बे तथा हजारों गांवों में गंगा जल बिरादरी गठित करने का प्रयास चालू है।

महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर 2009 को रिवर-सीवर अलग करने वाले ‘गंगा स्वच्छता चेतना अभियान’ को पूरी गंगा में शुरू कर दिया गया है। इसकी आगे की तैयारी हेतु ‘तरुण भारत संघ’ ने गोमुख से गंगासागर तक गंगा नदी में प्रदूषण मापक कार्यकर्ताओं का निर्माण का कार्य शुरु कर दिया है। ‘तरुण भारत संघ’ अध्यक्ष गंगा बेसिन प्राधिकरण के सदस्य भी हैं। उन्होंने स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के बलिदान दिवस पर गंगोत्री में सामुदायिक कचरा प्रबंधन का विकेन्द्रित तंत्र शुरू किया है। यह कार्य 21 मई, 2010 को गंगोत्री में राजेन्द्र सिंह तथा जल बिरादरी के समन्वयक श्री निरंजन सिंह ने गंगोत्री पहुंचकर कराया है। अब यहां खच्चरघर, पुलिस थाना आदि स्थानों पर कचरा प्रबंधन कार्य शुरू हो गया है। 22 मई को श्री गोपाल मणी जी आये। उन्होंने गंगा में स्वच्छता की चेतना जगाने का संकल्प दोहराया। ‘तरुण भारत संघ’ के साथ मिलकर काम करने की मंदिर के लोगों से अपील की। 23 मई से सैफ संस्था के सचिव शिव प्रसाद डबराल ने गंगोत्री में जैविक एवम् अजैविक पिट बनाने वाला काम शुरू किया है।

6 जून, 2010 को पुनः राजेन्द्र सिंह ने गंगोत्री पहुंचकर वहां के संतों से सम्पर्क साधकर उन सभी को उनकी गुफाओं-आश्रमों में जैविक, अजैविक पिट बनवाने हेतु प्रेरित किया। सभी ने सृजनात्मक जवाब दिया है। बहुत से आश्रमों में सैन्द्रिय खाद के पिट बनाने का काम शुरू हुआ है। मौनी आश्रम, कृष्णाश्रम ने पहल करके और सब संतों से मिलकर दूसरों को भी तैयार किया।

कचरा कुप्रबंधन से आज हमारी नदियां और तालाब-कुएं सब नष्ट होते जा रहे हैं। गोमुख में बहुत से कपड़े तथा पलास्टिक की बोतलें यहां मिली हैं। जंगल में प्लास्टिक कचरा जलाने से पर्यावरणीय प्रवाह बिगड़ता है।

1 comment:

  1. sir aap ke karyon mujhe bahut jada prabhavit kiya hai
    or mai chahta hun ki mai bhi aap ki tarah jal ka sanrakshan krne mein aap ka sahyog or apna aae wala kal sanvaru.
    Thank you so much Sir

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